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दूदे-तन्हाई के उस पार क्या है/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००६-२००७/२०११

दूदे-तन्हाई<ref>तन्हाई का धुँधलका (haze of solitude)</ref> के उस पार क्या है
वो ख़ुद है या उसके हुस्न की ज़या<ref>रोशनी (light)</ref> है

बेवजह किसी की याद सताती नहीं
मेरे दिल ने तुझे ही पसन्द किया है

फ़ैज़<ref>फ़ायदा (profit)</ref> क्या सोचें राहे-मोहब्बत में
क़ैस<ref>मजनूँ का वास्तविक नाम</ref> न हो हर आशिक़ इतनी दुआ है

सहाब<ref> बादल (cloud)</ref> बरसें हैं एक मुद्दत के बाद
ये मेरा नसीब है या उसकी वफ़ा है

हिचकियाँ आये हुए मुझे बरस हुए
क्या तुमने कभी मुझको याद किया है

तेरे जाने के बाद दिल में कुछ न रहा
बस बाक़ी दिल पे तेरा नक्शे-पा<ref>पैरों के चिह्न (footprint)</ref> है

अब सबा<ref>सुबह की हवा (breeze)</ref> चार-सू चुपचाप बहती है
ये ख़ामोशी कहती है तू ख़फ़ा है

ख़ुश रहो कि जाते हैं तेरी दुनिया से
कि ग़ैर से निबाह में तेरी दुनिया है

‘नज़र’ जो कहता था इश्क़ इक बला है
वो ख़ुद भी आज इश्क़ में मुब्तिला<ref>फँसा हुआ, जकड़ा हुआ (embroiled)</ref> है

शब्दार्थ
<references/>