भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखती है दीठ / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 19 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=हरी घास पर क्षण भर /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हँस रही है वधू-जीवन तृप्तिमय है।
प्रिय-वदन अनुरक्त-यह उस की विजय है।
गेह है, गति, गीत है, लय है, प्रणय है :

सभी कुछ है।
देखती है दीठ-
लता टूटी, कुरमुराता मूल में है सूक्ष्म भय का कीट!

शिलङ्, 15 नवम्बर, 1945