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"देखो / विपिनकुमार अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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राजा की अंगूठी
 
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अभिलाषा पूरी करने वाली
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कैसी भी आश्वस्ति
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बाज़ार में घूमता
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वनवासी साथी
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मृगशावक-सा
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और यह रहे
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छुपे यथार्थ का
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पावन
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आँचल तले
  
 
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01:56, 12 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

तट है जैसा
होता है समुद्र का

पाँव
छोड़ते थे जो चिन्ह
रेत पर
डूब गए हैं गहरे
यह
किनारे पर
आई लहरें
किन गतियों की
पहचान है।

यह गली वैसी
जैसी किसी शहर की

मटियाली हवा में
तैरती मछलियाँ
जुड़वाँ
ढूंढ़ती हैं
आज भी
पीले पत्तों में नवीन पल्लव
नग से जड़ी
राजा की अंगूठी

अभिलाषा पूरी करने वाली
कैसी भी आश्वस्ति
कोई परिचित भंगिमा
बाज़ार में घूमता
वनवासी साथी
मृगशावक-सा
और यह रहे
शाश्वत चिन्ह--

स्वप्न के पीछे
छुपे यथार्थ का
प्रिय रहस्य
मन्दिर के विलास में
प्रतिमा
पावन
रंग बदले
वत्सल पयोधर
आँचल तले