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देख सुकुमारी नारी / अनुराधा पाण्डेय

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देख सुकुमारी नारी, बनते जो ब्रह्मचारी, ऐसे पापी प्रेमियों की जाति बाँट दीजिये।
एक कलिका को छुए, दूसरे का रस पिए, ऐसे कामी भ्रमर का पंख काट दीजिए।
अँगुली पकड़ चाहे, पकडूं मृणाल बाँहे, ऐसों को तो पूर्व में ही, घोर डाँट दीजिए।
फिर भी जो न वे माने, लगे छल छंद गाने, ऐसे खल कामियों को, चार चाँट दीजिए।