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"देवी (सॉनेट)/ ज़िया फ़तेहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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तेरे ही गीत साज़ ए दो जहाँ पर गाता रहता हूँ  
 
तेरे ही गीत साज़ ए दो जहाँ पर गाता रहता हूँ  
 
जबीन ए शौक़ झुक कर तेरे क़दमों से नहीं उठती
 
जबीन ए शौक़ झुक कर तेरे क़दमों से नहीं उठती
उम्मीदों से दिल ए मासूम को बहलाता रहता हूँ  
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पुजारी बन के तेरा, बेनियाज़ ए दीन ओ दुनिया हूँ  
 
पुजारी बन के तेरा, बेनियाज़ ए दीन ओ दुनिया हूँ  
 
ताल्लुक़ अब ख़ुदा ओ हश्र से कुछ भी नहीं मुझ को  
 
ताल्लुक़ अब ख़ुदा ओ हश्र से कुछ भी नहीं मुझ को  
 
चमन में रह के भी अहल ए चमन से दूर रहता हूँ  
 
चमन में रह के भी अहल ए चमन से दूर रहता हूँ  
कि हरदम देखता हूँ मैं गुलों के रूप में तुझ को  
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कि हरदम देखता हूँ मैं गुलों के रूप में तुझ को
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पुजारी और देवी देखने में हस्तियाँ दो हैं  
 
पुजारी और देवी देखने में हस्तियाँ दो हैं  
 
मगर दोनों की रूहें एक हैं कैफ़ ए मुहब्बत में  
 
मगर दोनों की रूहें एक हैं कैफ़ ए मुहब्बत में  
 
नियाज़ ए इश्क़ ओ नाज़ ए हुस्न यूँ तो मस्तियाँ दो हैं  
 
नियाज़ ए इश्क़ ओ नाज़ ए हुस्न यूँ तो मस्तियाँ दो हैं  
मगर दिल पर असर है एक दोनों का हक़ीक़त में  
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मगर दिल पर असर है एक दोनों का हक़ीक़त में
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ये तकमील ए जुनूँ है, हासिल ए सद बेक़रारी है
 
ये तकमील ए जुनूँ है, हासिल ए सद बेक़रारी है
 
पुजारी है कभी देवी, कभी देवी पुजारी है
 
पुजारी है कभी देवी, कभी देवी पुजारी है
 
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08:33, 11 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

तुझे देवी बना कर पूजता हूँ दिल के मंदिर की
तेरे ही गीत साज़ ए दो जहाँ पर गाता रहता हूँ
जबीन ए शौक़ झुक कर तेरे क़दमों से नहीं उठती
उम्मीदों से दिल ए मासूम को बहलाता रहता हूँ
 
पुजारी बन के तेरा, बेनियाज़ ए दीन ओ दुनिया हूँ
ताल्लुक़ अब ख़ुदा ओ हश्र से कुछ भी नहीं मुझ को
चमन में रह के भी अहल ए चमन से दूर रहता हूँ
कि हरदम देखता हूँ मैं गुलों के रूप में तुझ को
 
पुजारी और देवी देखने में हस्तियाँ दो हैं
मगर दोनों की रूहें एक हैं कैफ़ ए मुहब्बत में
नियाज़ ए इश्क़ ओ नाज़ ए हुस्न यूँ तो मस्तियाँ दो हैं
मगर दिल पर असर है एक दोनों का हक़ीक़त में
 
ये तकमील ए जुनूँ है, हासिल ए सद बेक़रारी है
पुजारी है कभी देवी, कभी देवी पुजारी है