भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोपहर / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा

Kavita Kosh से
Jangveer Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:27, 24 जनवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रहस्य रची गई देह में है,
देह के अँधेरे में घुला
कुल विषाद तोड़ता है
कामनाओं का जटिल सच

देह में दम भरता हुआ जीवन
और भी कठिन है
देह के बाहर।