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"दो घड़ी की हँसी-खुशी के लिए / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
  
दो घड़ी की हँसी-खुशी के लिए
 
हम हुए क़ैद ज़िन्दगी के लिए
 
 
वह तड़पने का खेल देखा करें
 
ज़िन्दगी हमको दी इसीके लिए 
 
 
देवता हम नहीं, न पत्थर हैं
 
माफ़ कुछ तो है आदमी के लिए
 
 
कारवाँ उम्र का निकल भी गया
 
रह गए बैठे हम किसी के लिए
 
 
कब सुबह होगी, कब खिलेंगे गुलाब
 
दिल तड़पता है उस घड़ी के लिए
 
<poem>
 

02:10, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण