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दो चार पल सही कभी ऐसा दिखायी दे / शैलेश ज़ैदी

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दो चार पल सही कभी ऐसा दिखायी दे।
जिस ज़ाविये से देखूँ वो अपना दिखायी दे॥

जब भी हर एक सिम्त अँधेरा दिखायी दे।
दिल में वो एक्‌ चिराग़ जलाता दिखायी दे॥

वो क्या करे दरख़्त के साये की आरजू।
आँखों में दूर तक जिस सहरा दिखायी दे॥

जब होके सीढ़ियों से चली जाये छत पे धूप।
आँगन में सिर्फ़ एक धुँधलका दिखायी दे॥

बारिश से बच-बचाके जो घर में पनाह लूँ।
हर सिम्त से मकान टपकता दिखायी दे॥

मुद्दत हुई किया जिसे मैंने सुपुर्दे - ख़ाक।
हर लम्हा मेरे साथ वो ज़िन्दा दिखायी दे॥