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दो रोटी की खातिर / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान

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दो रोटी की खातिर

दो रोटी की खातिर कैसे
कैसे किये करम,
टके टके पर बेचा
हमने अपना दील धरम।
मांगे आग नहीं दी हमने
कभी पडोसी को ,
पूडी पुआ खिलाया बैठा
घर मेें दोषी को।
बदले रोज मुखौटे झंूठी
खाई रोज कसम,
कोमल सम्बन्धों की धरती
पर बबूल बोया ,
स्वार्थ हुआ तो दुश्मन के भी
पैरों को धोया।
रोज रचे घर से बाहर तक
नये नये तिकडम,
साथी से ले कर्ज नहीं फिर
लौटाया उसको,
मांगे पर उल्टे ही डांटा
अबे दिया किसकेा।
मातु पिता से कुशल न पूछी
धोयी लाज शरम ,
टके टके पर बेचा हमने
अपना दीन धरम।