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दो शेर-एक मक़्ता / फ़ानी बदायूनी

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तर्के-तदबीर को भी देख लिया।

यह भी तदबीर कारगर न हुई॥


यूँ मिली हर निगाह से वो निगाह।

एक की एक को ख़बर न हुई॥


आज तस्कीने-दर्देदिल ‘फ़ानी’।

वह भि चाहा किये मगर न हुई॥