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|संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिहारी वाजपेयी
}}
{{KKCatKavita}}<poem>जन की लगाय बाजी गाय की बचाई जान,<br>धन्य तू विनोबा ! तेरी कीरति अमर है।<br>दूध बलकारी, जाको पूत हलधारी होय,<br>सिंदरी लजात मल – मूत्र उर्वर है।<br>घास–पात खात दीन वचन उचारे जात,<br>मरि के हू काम देत चाम जो सुघर है।<br>बाबा ने बचाय लीन्ही दिल्ली दहलाय दीन्ही,<br>बिना लाव लस्कर समर कीन्हो सर है।<br/poem>
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