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"धर्म की चादर तान रे बन्दे / ब्रजमोहन" के अवतरणों में अंतर
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धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान | धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान | ||
+ | रहे, रहे ना चाहे पगले तू कोई इनसान रे बन्दे... | ||
− | + | योगी-भोगी, बाबा-साबा, सन्त-वन्त बन जा रे | |
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− | योगी-भोगी, बाबा-साबा, | + | |
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टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे | टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे | ||
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भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे... | भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे... | ||
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धर्म-कर्म की खुली छूट है जो चाहे सो कर ले | धर्म-कर्म की खुली छूट है जो चाहे सो कर ले | ||
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बाबाओं का देश निकम्मे भवसागर में तर ले | बाबाओं का देश निकम्मे भवसागर में तर ले | ||
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उस के नाम पे बन जा ख़ुद छोटा-मोटा भगवान रे... | उस के नाम पे बन जा ख़ुद छोटा-मोटा भगवान रे... | ||
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कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना | कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना | ||
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सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना | सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना | ||
− | + | फल खा पेट पे हाथ फिरा और चन्दन मुँह पे सान रे... | |
− | फल खा पेट पे हाथ फिरा और | + | </poem> |
01:26, 17 अक्टूबर 2017 के समय का अवतरण
धर्म की चादर तान रे बन्दे धर्म की चादर तान
रहे, रहे ना चाहे पगले तू कोई इनसान रे बन्दे...
योगी-भोगी, बाबा-साबा, सन्त-वन्त बन जा रे
टाट-वाट का चक्कर कर के ठाठ-बाट से खा रे
भगवा जीवन करता जा तू धन को अन्तर्धान रे...
धर्म-कर्म की खुली छूट है जो चाहे सो कर ले
बाबाओं का देश निकम्मे भवसागर में तर ले
उस के नाम पे बन जा ख़ुद छोटा-मोटा भगवान रे...
कर्म किए जा सब धर्मों का है भक्तों से कहना
सब के हिस्से का फल आख़िर तेरे पास ही रहना
फल खा पेट पे हाथ फिरा और चन्दन मुँह पे सान रे...