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धाराप्रवाह मेरी गति है बड़ी सुहानी / राघव शुक्ल

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धाराप्रवाह मेरी, गति है बड़ी सुहानी
आओ जरा सुनाऊँ, अपनी तुम्हें कहानी।

हूं नाज से पली मैं, उर्दू हमारा गहना
कन्नड़ तमिल मराठी, सारी हैं मे'री बहना
ब्रह्मा मेरे पिता हैं, माता है देववाणी
आओ जरा सुनाऊँ, अपनी तुम्हें कहानी।।

ब्रज में कहीं अवध में, बचपन है मे'रा बीता
काशी में गंगातट पर, जाकर हुई पुनीता
बंगाल में बनी हूँ, कवियों की मैं निशानी
आओ जरा सुनाऊँ, अपनी तुम्हें कहानी।।

तुलसी कबीर सूरा, दादू रसिक बिहारी
ग़ालिब औ मीर मोमिन, मेरे बने पुजारी
कान्हा के गीत गाकर, मीरा हुई दिवानी
आओ जरा सुनाऊँ,अपनी तुम्हें कहानी।

कवियों की लेखकों की, मैं ही कहाऊं माता
साहित्य प्रेमियों से, मेरा अटूट नाता
इन पर कृपा बिखेरो, हे मातु वीणापाणी।
आओ जरा सुनाऊँ,अपनी तुम्हें कहानी।।

अंग्रेजियत का अब है, हर ओर बोलबाला
बेटों ने आज मेरे, घर से मुझे निकाला
यूँ ही भटक रही हूँ, आँखों में भर के पानी
आओ जरा सुनाऊँ,अपनी तुम्हें कहानी।।

मैं राम की हूँ सरजू, कृष्णा की हूँ कालिन्दी
भारत के भाल पर मैं, बनकर सजी हूँ बिंदी
है नाम मे'रा हिन्दी, है हिन्द राजधानी
आओ जरा सुनाऊँ,अपनी तुम्हें कहानी।।