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"धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर
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− | + | जैसे-जैसे उम्र भीगी सादा-पोशी कम हुई | |
− | + | सूट पीला, शर्ट नीली, टाई धानी हो गई | |
− | + | उसकी उर्दू में भी अबकी मग़रिबी लहज़ा मिला | |
− | + | काले बालों की भी रंगत ज़ाफ़रानी हो गई | |
− | + | साँप के बोसे में कैसा प्यार था कि फ़ाख़्ता | |
− | + | फड़फड़ा कर इक सदा-ए-आसमानी हो गई | |
− | + | नर्म टहनी धुंध की यलग़ार को सहती हुई | |
− | + | शाख की बाँहों में आकर जाविदानी हो गई | |
− | ( | + | (१९६०) |
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08:59, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई
सुरमई अश्जार की पोशाक धानी हो गई
जैसे-जैसे उम्र भीगी सादा-पोशी कम हुई
सूट पीला, शर्ट नीली, टाई धानी हो गई
उसकी उर्दू में भी अबकी मग़रिबी लहज़ा मिला
काले बालों की भी रंगत ज़ाफ़रानी हो गई
साँप के बोसे में कैसा प्यार था कि फ़ाख़्ता
फड़फड़ा कर इक सदा-ए-आसमानी हो गई
नर्म टहनी धुंध की यलग़ार को सहती हुई
शाख की बाँहों में आकर जाविदानी हो गई
(१९६०)