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"धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई / बशीर बद्र" के अवतरणों में अंतर

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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा
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धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा
+
सुरमई अश्जार की पोशाक धानी हो गई
  
तुम्हें ज़ुरूर कोई चाहतों से देखेगा
+
जैसे-जैसे उम्र भीगी सादा-पोशी कम हुई
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा
+
सूट पीला, शर्ट नीली, टाई धानी हो गई
  
न जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो
+
उसकी उर्दू में भी अबकी मग़रिबी लहज़ा मिला
मकान ख़ाली हुआ है, तो कोई आयेगा
+
काले बालों की भी रंगत ज़ाफ़रानी हो गई
  
मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ
+
साँप के बोसे में कैसा प्यार था कि फ़ाख़्ता
अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा
+
फड़फड़ा कर इक सदा-ए-आसमानी हो गई
  
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
+
नर्म टहनी धुंध की यलग़ार को सहती हुई
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा
+
शाख की बाँहों में आकर जाविदानी हो गई
  
(१९८६)
+
(१९६०)
 
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08:59, 7 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

धूप खेतों में बिखर कर ज़ाफ़रानी हो गई
सुरमई अश्जार की पोशाक धानी हो गई

जैसे-जैसे उम्र भीगी सादा-पोशी कम हुई
सूट पीला, शर्ट नीली, टाई धानी हो गई

उसकी उर्दू में भी अबकी मग़रिबी लहज़ा मिला
काले बालों की भी रंगत ज़ाफ़रानी हो गई

साँप के बोसे में कैसा प्यार था कि फ़ाख़्ता
फड़फड़ा कर इक सदा-ए-आसमानी हो गई

नर्म टहनी धुंध की यलग़ार को सहती हुई
शाख की बाँहों में आकर जाविदानी हो गई

(१९६०)