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"धोखा कहें, फरेब कहें, हादसा कहें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>
 
  
धोखा कहें, फरेब कहें, हादसा कहें
 
इस जिन्दगी को क्या न कहें, और क्या कहें!
 
 
कहने से बेवफ़ा तो बुरा मानते हो तुम
 
अब तुमको बेवफ़ा न कहें, और क्या कहें!
 
 
खुद बेहिसाब, हमसे हरेक बात का हिसाब
 
तुमको अगर खुदा न कहें और क्या कहें!
 
 
कहते हैं वे कि बाग़ में पतझड़ है अब, गुलाब!
 
हम तुमको 'अलविदा' न कहें और क्या कहें!
 
<poem>
 

02:03, 2 जुलाई 2011 के समय का अवतरण