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नई कोई सरगम, कोई फ़साना, कभी मल्हार लगे / शमशाद इलाही अंसारी

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नई कोई सरगम, कोई फ़साना, कभी मल्हार लगे,
तेरी आँखों में मुझे बस प्यार ही प्यार दिखे।

कोई डूबा होगा रात भर तेरी पलकों के तले,
तेरे आँसू किसी की मौत के तलबग़ार दिखे।

कई कोशिशों के बाद कोई तह मुझे न मिल सकी,
थक कर बैठा साहिल पर तो वहाँ कई मददगार दिखे।

"शम्स" उसकी एक नज़र ने बख़्श दी ज़िन्दगी तुम्हें,
बस वो ही मंज़र अपना लगे, बाकी सब बेकार दिखे।


रचनाकाल: 24.10.2002