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"नई (अ)व्यवस्था / अवनीश सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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छुटकी बिटिया अपनी माँ से
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छुटकी बिटिया  
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अपनी माँ से
 
करती कई सवाल
 
करती कई सवाल
  
चूड़ी-कंगन नहीं हाथ में  
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चूड़ी-कंगन  
ना माथे पे बैना
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नहीं हाथ में  
भूरे-मटमैले हैं तेरे
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ना माथे पर बैना है
बौराए-से नैना
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मुख मटमैला-सा
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है तेरा
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बौराए-से नैना हैं
  
इन नैनो का नीर कहाँ है-
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इन नैनो का  
लम्बे-लम्बे बाल?
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नीर कहाँ-
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वो लम्बे-लम्बे बाल
  
देर-सवेर लौटती घर को
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देर-सबेर
जंगल-जंगल फिरती
+
लौटती घर को
लगती गुमसुम-गुमसुम-सी तू
+
जंगल-जंगल फिरती है
अंदर-अंदर तिरती
+
लगती  
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गुमसुम-गुमसुम-सी तू
 +
भीतर-भीतर तिरती है
  
डरी हुई हिरनी-सी है क्यों-
+
डरी हुई  
बदली-बदली चाल?
+
हिरनी-सी है क्यों
 +
बदली-बदली चाल
  
नई व्यवस्था में क्या माँ सब
+
नई व्यवस्था में क्या  
ऐसा ही है होता
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माँ  
छतों-मुँडेरों पर यों उल्लू
+
भय ऐसा भी होता है
रात-रात भर रोता
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छत-मुडेर पर  
 +
उल्लू असगुन
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बैठा-बैठा बोता है
  
कितना सागर पार करेंगे  
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पार करेंगे  
जर्जर-से ये पाल?
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कैसे सागर
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जर्जर-से हैं पाल
 
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21:36, 18 मार्च 2012 के समय का अवतरण

छुटकी बिटिया
अपनी माँ से
करती कई सवाल

चूड़ी-कंगन
नहीं हाथ में
ना माथे पर बैना है
मुख मटमैला-सा
है तेरा
बौराए-से नैना हैं

इन नैनो का
नीर कहाँ-
वो लम्बे-लम्बे बाल

देर-सबेर
लौटती घर को
जंगल-जंगल फिरती है
लगती
गुमसुम-गुमसुम-सी तू
भीतर-भीतर तिरती है

डरी हुई
हिरनी-सी है क्यों
बदली-बदली चाल

नई व्यवस्था में क्या
ऐ माँ
भय ऐसा भी होता है
छत-मुडेर पर
उल्लू असगुन
बैठा-बैठा बोता है

पार करेंगे
कैसे सागर
जर्जर-से हैं पाल