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नक़्श तो हूँ मैं नक़्शे-पा ही सही / परमानन्द शर्मा 'शरर'

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नक़्श तो हूँ मैं नक़्शे-पा ही सही
ख़ाकसारी का मर्तबा ही सही

आदमी हर लिहाज़ से हूँ शरीफ़
आपके सामने बुरा ही सही

मैंने माना शराब अच्छी नहीं
ग़म निगलने का आसरा ही सही

मेरी तशहीर पर हैं शादाँ आप
चलो उल्फ़त का यह सिला ही सही

आप लफ़्ज़ों की जंग लड़ते रहें
गुफ़्तगू का ये सिलसिला ही सही

हम ने हर दोस्त से निभाई है
है किसी को गिला, गिला ही सही

है ‘शरर’ पैकरे ख़ुलूसो-वफ़ा
यह चलन है बुरा बुरा ही सही