भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंडेलवाल…)
 
पंक्ति 19: पंक्ति 19:
  
 
गुलाब! अब उसी बाग़ में लौटना है  
 
गुलाब! अब उसी बाग़ में लौटना है  
जहां से ये खुशबू चुराई गयी है
+
जहां से ये ख़ुशबू चुराई गयी है
 
<poem>
 
<poem>

02:04, 2 जुलाई 2011 का अवतरण


नज़र उनसे छिपकर मिलाई गयी है
बचाते हुए चोट खाई गयी है!

उठा फूल कैसा अभी बाग़ से यह
हरेक शाख जैसे झुकायी गयी है

ये बाज़ी कोई और ही खेलता है
महज़ चाल हमसे चलायी गयी है

कभी इसका मतलब भी तुम पर खुलेगा
अभी तो हरेक बात आयी-गयी है

गुलाब! अब उसी बाग़ में लौटना है
जहां से ये ख़ुशबू चुराई गयी है