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नदी मेरे घर का पता भूल जाएगी-1 / इदरीस मौहम्मद तैयब

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प्रेमी कारावास से बुरी तरह थका है
उनके क़दमों की आवाज़ से बिखरते
दूर से आते गीत सिर्फ़ एक छलावा हैं
यह रात है जो हमारे ऊपर डर की तरह पड़ाव डाले है
ख़ुशगवार नींद की साँसे चुराते हुए
जो क्षितिज की पलकों को ललचाती है
यह अँधेरा आहें भरता है
इसकी आँख की पुतलियाँ चमकती हैं
चौकीदार कुत्ता आता है, जाता है
अपना शरीर फैलाते हुए दुबक कर बैठ जाता है
सन्नाटे की चादर को फाड़ते हुए
बरामदों की शान्ति को डरावनी करते हुए
और सपने
दूरियों के रेगिस्तान और लपटों के आनन्द के
बीच कशमकश करते हैं ।


रचनाकाल : 27 मार्च 1979

अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस