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नन्द चतुर्वेदी एक ही आदमी का नाम हो सकता था / हेमन्त शेष

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नन्द चतुर्वेदी एक ही आदमी का नाम हो सकता था
मैंने एक दिन सोचा

एक दिन जब मैं जा चुके सालों के बारे में
कुछ भी नया सोचना चाहता था
एक दिन जब मैं कुछ भी पढ़ना चाहता था
कुछ अच्छा कुछ बुरा कुछ अधपका कुछ रसीला
याद आया उनका ठिठुरता हुआ हस्तलेख

रुई देख कर उनके सफेद बाल
उनके कुछ ठहाके कुछ व्यंग्य मुझ पर
हँसते उनके बचे-खुचे कुछ दांत
कुछ स्मरणीय भाषण और समाजवादी प्रतिज्ञाएं
समाज को बदल देने की
और जब सारी हिन्दी कविता के बावजूद
हिन्दुस्तानी समाज नहीं बदला
उस दिन नन्द चतुर्वेदी मेरे लिए
एक और कवि का नाम था