भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमकहराम / कुमार अंबुज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस थाली में खाता है उसी को मारता है ठोकर
जिस घर में रहता है उसी में लगाता है सेन्ध

तुम याद करो,
तुमने उसकी थाली में वर्षों तक कितना कम खाना दिया
याद करो, तुमने उसे घर में उतनी जगह भी नहीं दी
जितनी तिलचट्टे, चूहे, छिपकलियाँ या कुत्ते घेर लेते हैं ।