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नमन् है ऐसे वीरों को / रोहित आर्य

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भारत के हित लहू बहाकर, तोड़ गये जंजीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को
अपने सीने पर झेला था, हर दुश्मन के तीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को
देश हो ये आज़ाद सोचकर, अपने सीने अड़ा गये,
भारत माँ की आज़ादी को, मौत से पंजा लड़ा गये।
वज्र बनाकर अपने तन को, मोड़ दिया शमशीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को
बालक, बूढ़े और जवानों, ने अपना बलिदान दिया,
हँस-हँसकर संगीनों के, आगे निज सीना तान दिया।
मस्तक देकर रहे बढ़ाते, भारत माँ के चीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को
जाने कितनी माताओं ने, अपने बेटे दान किये,
राखी और सिंदूर दे दिया, ऐसे त्याग महान किये।
झोंक दिया जलती भट्टी में, अपने सुमन शरीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को
लाखों के बलिदानों से, आज़ादी हमने पाई है,
ये चरखे से नहीं मिली, शोणित की नदी बहाई है।
"रोहित" हरगिज भूल न जाना, लोहू भरी लकीरों को,
नमन् है ऐसे वीरों को