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नम हुए सपने / संतोष श्रीवास्तव

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तुम्हारी याद
आंखों में फुहार बन उतरी
संग साथ के जाने कितने
दिलकश मंज़र गुज़र गए
जिनकी बेतरतीब आवाजाही
दिल की वीरानियों में
दस्तक देती रही
बमुश्किल दिल को सम्हाला
आहिस्ता-आहिस्ता
पलकों पर सांकल चढ़ा ली
और मुंदी आंखों में
नम हुए सपनों को
देर तलक थामे रही
पर क्या सपने थमते हैं
दीवारें जल्द ही भरभर गई
जिनका मलबा बटोरती रही
मैं भोर तलक