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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=नागार्जुन]][[Category:कवितायें]][[Category:|संग्रह=हज़ार-हज़ार बाहों वाली / नागार्जुन]]}}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~{{KKCatKavita}}<poem>दो हज़ार मन गेहूं गेहूँ आया दस गांवों गाँवों के नाम राधे चक्कर लगा काटने, सुबह हो गयी गई शाम सौदा पटा बडी मुश्किल से, पिघले नेताराम
सौदा पटा बड़ी मुश्किल से, पिघले नेताराम
पूजा पाकर साध गये चुप्पी हाकिम-हुक्काम
भारत-सेवक जी को था अपनी सेवा से काम खुला चोर-बाज़ार, बढा बढ़ा चोकर-चूनी का दाम भीतर झुरा गयी ठठरी, बाहर झुलसी चाम भूखी जनता की खातिर आज़ादी हुई हराम
भीतर झुरा गई ठठरी, बाहर झुलसी चाम
भूखी जनता की ख़ातिर आज़ादी हुई हराम
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल
बैलों वाले पोस्टर साटे, चमक उठी दीवाल
नीचे से लेकर ऊपर तक समझ गया सब हाल
सरकारी गल्ला चुपके से भेज रहा नेपाल
अन्दर टंगे पडे हैं गांधी-तिलक-जवाहरलाल
चिकना तन, चिकना पहनावा, चिकने-चिकने गाल
चिकनी किस्मत, चिकना पेशा, मार रहा है माल
नया तरीका अपनाया है राधे ने इस साल