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10:30, 10 जून 2010 के समय का अवतरण
नवल मेरे जीवन की डाल
बन गई प्रेम-विहग का वास!
आज मधुवन की उन्मद वात
हिला रे गई पात-सा गात,
मन्द्र, द्रुम-मर्मर-सा अज्ञात
उमड़ उठता उर में उच्छ्वास!
नवल मेरे जीवन की डाल
बन गई प्रेम-विहग का वास!
मदिर-कोरों-से कोरक जाल
बेधते मर्म बार रे बार,
मूक-चिर प्राणों का पिक-बाल
आज कर उठता करुण पुकार;
अरे अब जल-जल नवल प्रवाल
लगाते रोम-रोम में ज्वाल,
आज बौरे रे तरुण-रसाल
भौंर-मन मँडरा गई सुवास!
रचनाकाल: मार्च’ १९२८