भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं है नया हमारा प्यार / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:58, 21 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नहीं है नया हमारा प्यार
पहले से ही बसी हुई थी तारों में झंकार
 
जड़ पाषाण-खंड के भीतर
छिपी हुई थी प्रतिमा सुन्दर
मैंने बस निज कर से छूकर
किया उसे साकार
 
शब्दों की चादर के नीचे
सोयी थी कविता दृग मींचे
मैंने बस मुँह से पट खींचे
कुंतल दिए सँवार
 
प्राणों के अविदित परिचय में
घुमड़ रहा था प्रेम हृदय में
मैंने बस बाँधा सुर-लय में
नयन हुए जब चार

नहीं है नया हमारा प्यार
पहले ही से बसी हुई थी तारों में झंकार