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नाज़ुक हैं नज़ाकत का बयाँ हो नहीं सकता / रियाज़ ख़ैराबादी

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नाज़ुक हैं नज़ाकत का बयाँ हो नहीं सकता
वो ऐसे हैं कुछ और गुमाँ हो नहीं सकता

तू और रह-ए-शाैक़ इस आहिस्ता-रवी से
अब साथ तिरा उम्र-ए-रवाँ हो नहीं सकता

मैं और शब-ए-वस्ल कहूँ क्या तिरे दिल की
हो मुँह में मिरे तेरी ज़बाँ हो नहीं सकता

बन जाती है हर बात जो मौक़ा भी ख़ुदा दे
ये झूठ है सच अहद-ए-बुताँ हो नहीं सकता

जब लोगों में दोनों की बुज़ुर्गी है मुसल्लम
क्या शेख़-ए-हरम पीर-ए-मुग़ाँ हो नहीं सकता

हर राज़ में सौ बातें हैं हर बात में सौ राज़
अफ़्साना-ए-दिल हम से बयाँ हो नहीं सकता

हम ने भी ‘रियाज़’ आप के अशआर सुने हैं
ये लुत्फ़-ए-बयाँ लुत्फ़-ए-ज़बाँ हो नहीं सकता