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नाम-ओ-नसब / अली अकबर नातिक़

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ऐ मिरा नाम ओ नसब पूछने वाले सुन ले

मेरे अज्दाद की क़ब्रों के पुराने कत्बे
जिन की तहरीर मह ओ साल के फ़ित्नों की नक़ीब
जिन को बोसीदा सिलें सीम-ज़दा शोर-ज़दा
और आसेब ज़माने के रहे जिन का नसीब

पुश्त-दर-पुश्त बिला फ़स्ल वो अज्दाद मिरे
अपने आक़ाओं की मंशा थी मशिय्यत उन की
गर वो ज़िंदा थे तो ज़िंदों में वो शामिल कब थे
और मरने पे फ़क़त बोझ थी मय्यत उन की

जिन को मक्तब से लगाओ था न मक़्तल की ख़बर
जो न ज़ालिम थे न ज़ालिम के मुक़ाबिल आए
जिन की मसनद पे नज़र थी न ही ज़िंदाँ का सफ़र

ऐ मिरा नाम ओ नसब पूछने वाले सुन ले
ऐसे बे-दाम ग़ुलामों की निशानी मैं हूँ