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"नाम-रूप का भेद / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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नाम - रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ?
 
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नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और
 
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शक्ल - अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने
 
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बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने
 
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कहँ ‘ काका ' कवि , दयाराम जी मारें मच्छर
 
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विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर
 
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मुंशी चंदालाल का तारकोल सा रूप
 
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श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप
 
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जैसे खिलती धूप , सजे बुश्शर्ट पैंट में -
 
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ज्ञानचंद छै बार फ़ेल हो गये टैंथ में
 
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कहँ ‘ काका ' ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे
 
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पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे
 
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देख अशर्फ़ीलाल के घर में टूटी खाट
 
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सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ
 
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मील चल रहे आठ , करम के मिटें न लेखे
 
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धनीराम जी हमने प्रायः निर्धन देखे
 
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कहँ ‘ काका ' कवि , दूल्हेराम मर गये कुँवारे
 
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बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बेचारे
 
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पेट न अपना भर सके जीवन भर जगपाल
 
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बिना सूँड़ के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल
 
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मिलें गणेशीलाल , पैंट की क्रीज़ सम्हारी
 
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बैग कुली को दिया , चले मिस्टर गिरधारी
 
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कहँ ‘ काका ' कविराय , करें लाखों का सट्टा
 
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नाम हवेलीराम किराये का है अट्टा
 
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चतुरसेन बुद्धू मिले , बुद्धसेन निर्बुद्ध
 
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श्री आनंदीलाल जी रहें सर्वदा क्रुद्ध
 
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रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते
 
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इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते
 
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कहँ ‘ काका ', बलवीर सिंह जी लटे हुये हैं
 
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थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुये हैं
 
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बेच रहे हैं कोयला , लाला हीरालाल
 
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सूखे गंगाराम जी , रूखे मक्खनलाल
 
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रूखे मक्खनलाल , झींकते दादा - दादी
 
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निकले बेटा आशाराम निराशावादी
 
निकले बेटा आशाराम निराशावादी
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कहँ ‘ काका ' कवि , भीमसेन पिद्दी से दिखते
 
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कविवर ‘ दिनकर ’ छायावदी कविता लिखते
 
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तेजपाल जी भोथरे , मरियल से मलखान
 
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लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान
 
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करी न कौड़ी दान , बात अचरज की भाई
 
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वंशीधर ने जीवन - भर वंशी न बजाई
 
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कहँ ‘ काका ' कवि , फूलचंद जी इतने भारी
 
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दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी
 
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खट्टे - खारी - खुरखुरे मृदुलाजी के बैन
 
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मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन
 
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चिलगोजा से नैन , शांता करतीं दंगा
 
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नल पर नहातीं , गोदावरी , गोमती , गंगा
 
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कहँ ‘ काका ' कवि , लज्जावती दहाड़ रही हैं
 
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दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं
 
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अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम
 
अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम
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कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम
 
कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम
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रक्खा दशरथ नाम , मेल क्या खूब मिलाया
 
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दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया
 
दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया
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‘ काका ' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा
 
‘ काका ' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा
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पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा
 
पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा

20:14, 31 अक्टूबर 2006 का अवतरण

लेखक: काका हाथरसी

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नाम - रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ?

नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और

शक्ल - अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने

बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने

कहँ ‘ काका ' कवि , दयाराम जी मारें मच्छर

विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर


मुंशी चंदालाल का तारकोल सा रूप

श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप

जैसे खिलती धूप , सजे बुश्शर्ट पैंट में -

ज्ञानचंद छै बार फ़ेल हो गये टैंथ में

कहँ ‘ काका ' ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे

पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे


देख अशर्फ़ीलाल के घर में टूटी खाट

सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ

मील चल रहे आठ , करम के मिटें न लेखे

धनीराम जी हमने प्रायः निर्धन देखे

कहँ ‘ काका ' कवि , दूल्हेराम मर गये कुँवारे

बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बेचारे



पेट न अपना भर सके जीवन भर जगपाल

बिना सूँड़ के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल

मिलें गणेशीलाल , पैंट की क्रीज़ सम्हारी

बैग कुली को दिया , चले मिस्टर गिरधारी

कहँ ‘ काका ' कविराय , करें लाखों का सट्टा

नाम हवेलीराम किराये का है अट्टा


चतुरसेन बुद्धू मिले , बुद्धसेन निर्बुद्ध

श्री आनंदीलाल जी रहें सर्वदा क्रुद्ध

रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते

इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते

कहँ ‘ काका ', बलवीर सिंह जी लटे हुये हैं

थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुये हैं


बेच रहे हैं कोयला , लाला हीरालाल

सूखे गंगाराम जी , रूखे मक्खनलाल

रूखे मक्खनलाल , झींकते दादा - दादी

निकले बेटा आशाराम निराशावादी

कहँ ‘ काका ' कवि , भीमसेन पिद्दी से दिखते

कविवर ‘ दिनकर ’ छायावदी कविता लिखते


तेजपाल जी भोथरे , मरियल से मलखान

लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान

करी न कौड़ी दान , बात अचरज की भाई

वंशीधर ने जीवन - भर वंशी न बजाई

कहँ ‘ काका ' कवि , फूलचंद जी इतने भारी

दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी



खट्टे - खारी - खुरखुरे मृदुलाजी के बैन

मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन

चिलगोजा से नैन , शांता करतीं दंगा

नल पर नहातीं , गोदावरी , गोमती , गंगा

कहँ ‘ काका ' कवि , लज्जावती दहाड़ रही हैं

दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं


अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम

कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम

रक्खा दशरथ नाम , मेल क्या खूब मिलाया

दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया

‘ काका ' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा

पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा