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नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई / धनी धरमदास

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नाम क रंग मंजीठ, लगै छूटै नहिं भाई।
लचपच रहो समाय, सार तामैं अधिकाई।
केती बार धुलाइये, दे दे करडा धोय।
ज्यों-ज्यों भट्ठी पर दिए, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय॥