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"नाम लेते जिनका दुःख भागे / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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[[Category:गीत]]
 
<poem>
 
  
नाम लेते जिनका दुःख भागे
 
मिला उन्हें तो जीवन-भर दुःख ही दुःख आगे-आगे
 
 
 
छूटा अवध साथ प्रिय-जन का
 
शोक असह था पिता-मरण का
 
देख कष्ट मुनियों के मन का
 
वन के सुख भी त्यागे
 
 
 
वन-वन प्रिया-विरह में फिरना
 
'कैसे हो सागर का तिरना?'
 
भ्राता का मूर्छित हो गिरना
 
नित नव-नव दुःख जागे
 
 
 
गूँजी ध्वनि जब कीर्ति-गान की
 
फिर चिर-दुःख दे गयी जानकी
 
माँग उन्हीं-सी शक्ति प्राण की
 
मन! तू सुख क्या माँगे!
 
 
नाम लेते जिनका दुःख भागे
 
मिला उन्हें तो जीवन-भर दुःख ही दुःख आगे-आगे
 
<poem> 
 

02:55, 22 जुलाई 2011 के समय का अवतरण