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नासदीय सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 129 / 4 / कुमार मुकुल

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पहिले पहल
बरहम के मन में
कामना उपजल
ओह कामना से
सृष्टिबीज उपजल
तब ओही अभाव से भरल
ब्रह्मांड में
ऋषि लोग
कामना रूप भाव के
महसूस कइलन ॥4॥

कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥4॥