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ना तीर न तलवार से मरती है सचाई / उदयप्रताप सिंह

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ना तीर न तलवार से मरती है सचाई
जितना दबाओ उतना उभरती है सचाई

ऊँची उड़ान भर भी ले कुछ देर को फ़रेब
आख़िर में उसके पंख कतरती है सचाई

बनता है लोह जिस तरह फ़ौलाद उस तरह
शोलों के बीच में से गुज़रती है सचाई

सर पर उसे बैठाते हैं जन्नत के फ़रिश्ते
ऊपर से जिसके दिल में उतरती है सचाई

जो धूल में मिल जाय, वज़ाहिर, तो इक रोज़
बाग़े-बहार बन के सँवरती है सचाई

रावण क़ी बुद्धि-बल से न जो काम हो सके
वो राम क़ी मुस्कान से करती है सचाई