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"निभाई है यहाँ हमने मुहब्बत भी सलीक़े से / सतपाल 'ख़याल'" के अवतरणों में अंतर

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न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी
 
न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी
सवालों और ख्यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से.
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सवालों और ख़यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से.
  
 
जो टूटे शाख से यारो अभी पत्ते हरे हैं वो
 
जो टूटे शाख से यारो अभी पत्ते हरे हैं वो
यकीं कुछ देर से होगा नही अब दिन वो पहले से
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यक़ीं कुछ देर से होगा नहीं अब दिन वो पहले से
  
घरों से उबकर अब लोग मैखाने मे आ बैठे
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घरों से उबकर अब लोग मैख़ा
सजी हैं महफिलें देखो यहां कितेने क़रीने से
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ने में आ बैठे
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सजी हैं महफ़िलें देखो यहाँ कितेने क़रीने से
  
 
"ख़याल" अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है
 
"ख़याल" अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है
 
नज़र आते हैं उसके तो मुझे तेवर ही बदले से
 
नज़र आते हैं उसके तो मुझे तेवर ही बदले से
 
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18:25, 1 मार्च 2009 का अवतरण

  
निभाई है यहाँ हमने मुहब्बत भी सलीक़े से
दिए जो रंज़ो-ग़म इसने लगाए हमने सीने से

हमेशा ज़िंदगी जी है यहाँ औरों की शर्तों पर
मिले मौका अगर फिर से जिऊँ अपने तरीके से

न की तदबीर ही कोई , न थी तकदीर कुछ जिनकी
सवालों और ख़यालों मे मिले हैं अब वो उलझे से.

जो टूटे शाख से यारो अभी पत्ते हरे हैं वो
यक़ीं कुछ देर से होगा नहीं अब दिन वो पहले से

घरों से उबकर अब लोग मैख़ा
ने में आ बैठे
सजी हैं महफ़िलें देखो यहाँ कितेने क़रीने से

"ख़याल" अपनी ही करता है कहाँ वो मेरी सुनता है
नज़र आते हैं उसके तो मुझे तेवर ही बदले से