भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निर्णय / हरिहर चौधरी 'विकल'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:09, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिहर चौधरी 'विकल' |अनुवादक= }} {{KKCatAngik...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिलखै छी देखी केॅ भुट्टा के बाली केॅ
भीषण जवानी छै सूर्यो ॅ के लाली केॅ
पगडण्डी, ठाँव-ठाँव, सुखलोॅ हरियाली छै
भादो महीना में है रं लाचारी छै
धानोॅ के पौध भी तड़पै छै पानी लेॅ
कपसै छोॅ भैया की एक्के बार कानी लेॅ
कुइयाँ पर कुइयाँ छै कत्तेॅ सरकारोॅ के
एक्खौं में पानी नै बनलोॅ ठिकदारोॅ के
परसेंटेज बान्हलोॅ छै ऊपरे संे नीचें तक
कहभोॅ की सुनथौं के पीऊन सें अफसर तक
ठीका के युगोॅ में कामो सब फीका छै
लीची के गाछोॅ में फरलोॅ पपीता छै
पशुओ के चारा केॅ गिलै जनसेवक नें
अलकतरा पीयै छै कत्तेॅ निर्देशक नें
यूरिया दवाई में चर्चा छै जोरोॅ पर
टेलीफोन सटलोॅ छै लाठी के पोरोॅ पर
मुँहोॅ पर कालिख छै हवाला कांडोॅ सें
साँढ़ो दुहावै छै स्कूटर ब्रांडोॅ सें
है रं समस्या में धरम की भैया हो
हमरा किसानोॅ केॅ के छै देखवैया हो
उपजैवै भुट्टा केॅ खूनोॅ के पानी सें
भिक्षाटन करवै नै महलोॅ के रानी सें ।