भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"निर्मलमना ! / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
जीभर वे मुस्काए
 
जीभर वे मुस्काए
 
विद्रूप  हुआ रूप।
 
विद्रूप  हुआ रूप।
4
+
3
 
'''निर्मलमना !'''
 
'''निर्मलमना !'''
 
गोमुख के जल-सा
 
गोमुख के जल-सा
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
समझेंगे वे कैसे
 
समझेंगे वे कैसे
 
जो नालियों में डूबे?
 
जो नालियों में डूबे?
5
+
4
 
शान्त- विमल
 
शान्त- विमल
 
शरदेन्दु -सा भाल
 
शरदेन्दु -सा भाल
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
बहाती सुधा -धार
 
बहाती सुधा -धार
 
ओक से पिया प्यार।
 
ओक से पिया प्यार।
6
+
5
 
हार जाएँगी
 
हार जाएँगी
 
घुमड़तीं आँधियाँ
 
घुमड़तीं आँधियाँ

09:49, 4 जनवरी 2020 के समय का अवतरण

1
विश्वास छला
ईर्ष्या- अनल जगी
सब ही जला
फूटी आँखों न भाया
सच्चा प्यार किसी का।
2
जलाने चले
औरों के घर- द्वार
हजारों बार
जीभर वे मुस्काए
विद्रूप हुआ रूप।
3
निर्मलमना !
गोमुख के जल-सा
पावन प्यार
समझेंगे वे कैसे
जो नालियों में डूबे?
4
शान्त- विमल
शरदेन्दु -सा भाल
नैनों की ज्योति
बहाती सुधा -धार
ओक से पिया प्यार।
5
हार जाएँगी
घुमड़तीं आँधियाँ
अडिग शिला!
शिव संकल्प लिया-
‘क्षितिज हम छुएँ !’
-०-