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"नीम तले (नवगीत) / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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सब ताश खेलते
 
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रोज़ सुबह से शाम
 
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कई महीनों बाद मिला है
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कई महीने बाद मिला है
 
खेतों को आराम
 
खेतों को आराम
  

23:01, 26 मार्च 2023 के समय का अवतरण

नीम तले
सब ताश खेलते
रोज़ सुबह से शाम
कई महीने बाद मिला है
खेतों को आराम

फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार

ढाल
पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम

शहर गया है
गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना
नए वक़्त से
मिला महीनों बाद

फिर से महक उठे आँगन में
रोटी, बोटी, जाम

छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई
सूरज ने आकर छुए गुलाबी गाल

बोली
छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम