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ईश पैंठ संसार यह दोही वस्‍तु बिकाय।
व्यवपारी मनु जीव है जो चाहै लै जाय।।
 
जा चाहै लै जाय विभव कछु काम न आवै।
ईश करैं वहं न्‍याय कर्म का फल भुगतावै।।
 
कहैं रहमान बदी सग लैहौ नर्क परै तोरे शीश।
लीजौ नेकी जगत महं स्‍वर्ग देंय तुम्‍हें ईश।।
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