भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नैनों से चुए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 50: पंक्ति 50:
 
तरसूँ रात दिन
 
तरसूँ रात दिन
 
दिखे न चाँद।
 
दिखे न चाँद।
 
 
-0-
 
-0-
 
</poem>
 
</poem>

15:36, 7 सितम्बर 2019 का अवतरण

74
कोहरा छँटा
अपने -पराए का
भेद भी जाना।
75
निकष तुम
रिश्तों की उतरी है
झूठी कलई ।
76
वक्त ने कहा-
माना मैं बुरा सही
छली तो छूटे।
77
बात अधूरी
फोन क्या कट गया,
हुई न पूरी।
78
हारे नहीं थे,
कपट ने छीने थे
सहारे सभी।
79
ओस बनके
आँसू छलक आए-
याद किसी की।
80
खारे नहीं थे,
मादक मधु लगे
आँसू तुम्हारे।
81
तिरते मिले-
भूरे घन गगन
नैनों में तेरे।
82
हथेली लिये
मोती दो दमकते
नैनों से चुए।
83
चाँद जो मेरा
दूर बहुत दूर
मैं मजबूर।
84
घिरे हैं घन
तरसूँ रात दिन
दिखे न चाँद।
-0-