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"न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाएँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाएँ।
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न इतनी आँच दे लौ को कि दीपक ही पिघल जाए।
न इतने भाव भर दिल में के झूठे तर्क छल जाएँ।
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न इतने भाव भर दिल में कि झूटा तर्क छल जाए।
  
 
सुना था जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है,
 
सुना था जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है,
धन इतना दे अमीरों को के गिर सबके महल जाएँ।
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धन इतना दे अमीरों को कि ढह सबका महल जाए।
  
तभी समझेंगे अपने लोग मेरे प्रेम को शायद,
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तभी समझेगा मेरा यार मेरे प्रेम को शायद,
जब उनको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाएँ।
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जब उसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए।
  
है आधा पेट जो जीने न मरने दे गरीबों को,
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है आधा पेट जो जीने न मरने दे ग़रीबों को,
दे इतनी आग चूल्हे में के ये दिन भी निकल जाएँ।
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दे इतनी आग सीने में कि इनकी भूख जल जाए।
  
जिसे देखूँ, रहूँ जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दे वरना,
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जिसे देखूँ, रहूँ ज़िंदा कुछ ऐसा छोड़ दे वरना,
तेरे यमदूत मुर्दा मानकर मुझको न टल जाएँ।
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तेरा यमदूत मुर्दा मान कर मुझको न टल जाए।
 
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10:13, 26 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

न इतनी आँच दे लौ को कि दीपक ही पिघल जाए।
न इतने भाव भर दिल में कि झूटा तर्क छल जाए।

सुना था जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है,
धन इतना दे अमीरों को कि ढह सबका महल जाए।

तभी समझेगा मेरा यार मेरे प्रेम को शायद,
जब उसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए।

है आधा पेट जो जीने न मरने दे ग़रीबों को,
दे इतनी आग सीने में कि इनकी भूख जल जाए।

जिसे देखूँ, रहूँ ज़िंदा कुछ ऐसा छोड़ दे वरना,
तेरा यमदूत मुर्दा मान कर मुझको न टल जाए।