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न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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न ऐसे देख बेचारा नहीं हूँ।
थका तो हूँ मगर हारा नहीं हूँ।

चमक मुझमें है पर गर्मी नहीं है,
मैं इक जुगनू हूँ अंगारा नहीं हूँ।

यकीनन संग-दिल भी काट दूँगा,
तो क्या जो बूँद हूँ धारा नहीं हूँ।

सभी को साथ लेकर क्यूँ मिटूँगा?
मैं शबनम हूँ कोई तारा नहीं हूँ।

मेरी हर बात को अंतिम न मानो,
मैं पूरा हूँ मगर सारा नहीं हूँ।

कभी मैं रह न पाऊँगा महल में,
मैं इक झरना हूँ फ़व्वारा नहीं हूँ।

कभी मुझमें उतरकर देख लेना,
समंदर हूँ मगर खारा नहीं हूँ।