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"न तैयार था कोई जाने को गाँव (तीसरा सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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हुआ चाँदनी में अमावस का रंग
 
हुआ चाँदनी में अमावस का रंग
 
हवा तेज़, तूफ़ान आने का ढंग  
 
हवा तेज़, तूफ़ान आने का ढंग  
छिपा बादलों की गुफाओं में ताज़
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छिपा बादलों की गुफाओं में ताज
 
उलट-सी रही जैसे जमना भी आज
 
उलट-सी रही जैसे जमना भी आज
सभी आफतें जान पर एक साथ  
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सभी आफ़तें जान पर एक साथ  
 
ठहर ही न पाते हैं डाँड़ों पे हाथ'
 
ठहर ही न पाते हैं डाँड़ों पे हाथ'
 
तभी जैसे बिजली की तलवार से
 
तभी जैसे बिजली की तलवार से
अन्धेरा कटा एक ही वार से  
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कोई जलपरी स्याह लहरों पे लोट  
 
कोई जलपरी स्याह लहरों पे लोट  
 
हुई जैसे दमभर में आँखों की ओट
 
हुई जैसे दमभर में आँखों की ओट
 
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02:29, 21 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


न तैयार था कोई जाने को गाँव
बड़ी मुश्क़िलों से पटी एक नाव
मुसाफ़िर न थे साथ में और भी
महज़ बड़बड़ाता  था माँझी कभी--
'नहीं आज-सा मैंने मौसम ख़राब
कभी ज़िंदगी भर में देखा ज़नाब
हुआ चाँदनी में अमावस का रंग
हवा तेज़, तूफ़ान आने का ढंग
छिपा बादलों की गुफाओं में ताज
उलट-सी रही जैसे जमना भी आज
सभी आफ़तें जान पर एक साथ
ठहर ही न पाते हैं डाँड़ों पे हाथ'
तभी जैसे बिजली की तलवार से
अँधेरा कटा एक ही वार से
कोई जलपरी स्याह लहरों पे लोट
हुई जैसे दमभर में आँखों की ओट