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न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे / आतीक़ अंज़र

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न मिल सका तरी लहरों में भी क़रार मुझे
समुंदर अपनी तहों में ज़रा उतार मुझे

हवा के पाँव की आहट गुलाब की चीख़ें
सुनी है मैं ने अदालत ज़रा पुकार मुझे

मैं बार बार तिरे वास्ते बिखर जाऊँ
तू बार बार मिरे आईने सँवार मुझे

फ़लक को तोड़ दूँ मैं अपनी आह से लेकिन
ज़मीन वालों से बे-इंतिहा है प्यार मुझे

इक उस की ज़ात से जब मेरा ए‘तिबार उठा
तो फिर किसी पे भी आया न ए‘तिबार मुझे