भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पंजाबी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(पृष्ठ को ''' से बदल रहा है।)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'
 
'
 +
 +
 +
 +
[[जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां,
 +
के वड्डे हो के डाके डालदा, जगया,
 +
]]
 +
 +
 +
जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां,
 +
के वड्डे हो के डाके डालदा, जगया,
 +
के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,
 +
 +
-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयां,
 +
के सारे पिंड गुड वण्डया, जगया,
 +
के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,
 +
 +
जग्गे मारया लैलपुर डाका, के तारां खड़क गईयाँ
 +
-जे मैं जाणदी जग्गे मर जाणा,
 +
मैं इक थाईं दो जणदी, जगया!
 +
के टुट्टी होई माँ दे कलेजे छुरा वजया
 +
 +
-जग्गे जिन्दे नू सूली उत्ते टंगया,
 +
ते भैण दा सुहाग चुमके, मखना,
 +
के क्यों तुर चले गयों बेडा चखना,
 +
 +
-जग्गा मारया बोड दी छां ते,
 +
के नौ मण रेत भिज गयी, सुरना !
 +
के माँ दा मार दित्ताइ पुत्त सूरमा,
 +
 +
-चली दुक्खां दी अन्हेरी ऐसी,
 +
के दीवे वाली लाट बुझ गयी, चानना!
 +
वे तेरे बिना मान कित्थे नहिंयों जानना?
 +
 +
- वे तू दुक्ख पुत्तरां दा वेखें,
 +
वे टूटे तेरा मान हाकमा, ढोल वे!
 +
के गंगाजल विच क्यों दित्तइ जहर घोल वे,
 +
 +
-सानू शगणा दा कर दे लीरा,
 +
के छड़ेयां दा पुन्न तोड़ दे, हाल नी!
 +
के होणी खेड गयी, चाल नेरे नाळ नी,
 +
 +
-बारी खोल के यारी दी लाज रख लै,
 +
मित्तरो! तेरे चन दी, नारे नी
 +
देख तेनु सज्जन बुए ते वाजाँ मारे नी,
 +
 +
-लम्ब होकयां दे बल पये औंदे,
 +
के खदरान नू अग्ग लग गई, हाय नी!
 +
के भौर उड़ गये ते फुल कुम्ल्हाने नी.
 +
 +
-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयां,
 +
के सारे पिंड गुड वण्डया, जगया,
 +
जगया, के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,
 +
--

09:09, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

'


[[जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां, के वड्डे हो के डाके डालदा, जगया, ]]


जग्गा जमया ते मिलन वधाईयां, के वड्डे हो के डाके डालदा, जगया, के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,

-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयां, के सारे पिंड गुड वण्डया, जगया, के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया,

जग्गे मारया लैलपुर डाका, के तारां खड़क गईयाँ -जे मैं जाणदी जग्गे मर जाणा, मैं इक थाईं दो जणदी, जगया! के टुट्टी होई माँ दे कलेजे छुरा वजया

-जग्गे जिन्दे नू सूली उत्ते टंगया, ते भैण दा सुहाग चुमके, मखना, के क्यों तुर चले गयों बेडा चखना,

-जग्गा मारया बोड दी छां ते, के नौ मण रेत भिज गयी, सुरना ! के माँ दा मार दित्ताइ पुत्त सूरमा,

-चली दुक्खां दी अन्हेरी ऐसी, के दीवे वाली लाट बुझ गयी, चानना! वे तेरे बिना मान कित्थे नहिंयों जानना?

- वे तू दुक्ख पुत्तरां दा वेखें, वे टूटे तेरा मान हाकमा, ढोल वे! के गंगाजल विच क्यों दित्तइ जहर घोल वे,

-सानू शगणा दा कर दे लीरा, के छड़ेयां दा पुन्न तोड़ दे, हाल नी! के होणी खेड गयी, चाल नेरे नाळ नी,

-बारी खोल के यारी दी लाज रख लै, मित्तरो! तेरे चन दी, नारे नी देख तेनु सज्जन बुए ते वाजाँ मारे नी,

-लम्ब होकयां दे बल पये औंदे, के खदरान नू अग्ग लग गई, हाय नी! के भौर उड़ गये ते फुल कुम्ल्हाने नी.

-जग्गा, जमया ते मिलन वधाईयां, के सारे पिंड गुड वण्डया, जगया, जगया, के तुर परदेस गयों वे बुआ वजया, --