भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है / मदन मोहन दानिश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 19 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन मोहन दानिश |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> पत्थर पहले …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पत्थर पहले ख़ुद को पत्थर करता है
उसके बाद ही कुछ कारीगर करता है

एक ज़रा सी कश्ती ने ललकारा है
अब देखें क्या ढोंग समंदर करता है

कान लगा कर मौसम की बातें सुनिए
क़ुदरत का सब हाल उजागर करता है

उसकी बातों में रस कैसे पैदा हो
बात बहुत ही सोच-समझकर करता है

जिसको देखो दानिश का दीवाना है
क्या वो कोई जादू-मंतर करता है