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पथ अगोरते लाज लुट गई / रवीन्द्र भ्रमर

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पथ अगोरते लाज लुट गई
मीत नहीं आए ।

रन्ध्र रन्ध्र रिस गई बांसुरी
पोर पोर रीते,
स्वर संवारते बेला रूठी
गीत नहीं आए ।

पँखुरियाँ मुरझीं पंकज की — 
मुख छवि म्लान हुई,
नयन नीर रीते
दुख के दिन बीत नहीं पाए ।

एक लाग है, एक लगन है
उन्हें रिझाने की,
इतनी आयु गवांकर
अब तक जीत नहीं पाए ।

पथ अगोरते लाज लुट गई
मीत नहीं आए ।