भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / 7 / रानी रघुवंशकुमारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहत पुकार कोइलिया हे ऋतुराज।
न्याय-दृष्टि से देखहु बिपिन-समाज॥
सोना सम्पति काज त्यागि सब साज।
भये उदासी बिरिया बिसरो लाज॥
ध्यान करहु इत अब सुध कस नहिं लेत।
तीछन बहत बयरिया करत अचेत॥