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पनचक्की का गीत / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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महान लोग हुए कितने सारे
उन पर कसीदे काढ़े गए :
चमकते रहे वे जैसे सितारे
सितारों की मानिन्द वे बुझ भी गए ।
ढाढ़स की बात यह, लेकिन जनाब
हमें तो था उनकी खुराक़ जुटाना
अब उससे कैसे निजात पाना
कैसे चुके उसका हिसाब ?
बेशक, घूमती रहती है चक्की
जो ऊपर है, ऊपर रहता नहीं.
पर पानी के लिए यह बात है पक्की
चक्की घुमाता हमेशा वही ।
होता रहा उनका आना-जाना
कोई शेर था और कुछ चीते
बाज़ भी थे और सूअर भी थे
हमारा काम था उन्हें खिलाना ।
बेहतर कोई, कोई था कमतर :
जूते तो सबके रहे बराबर,
हम पर वे पड़ते थे भारी, चुनाँचे कहता हूँ यही
दूसरे मालिक नहीं चाहिए, बल्कि मालिक कोई नहीं !
बेशक, घूमती रहती है चक्की
जो ऊपर है, ऊपर रहता नहीं ।
पर पानी के लिए यह बात है पक्की
चक्की घुमाता हमेशा वही ।
 
एक-दूसरे पर टूट पड़ते वे
झपट लेते हैं लूट का माल
दूसरे को वे कहते गदहा
और अपने को बेमिसाल ।
आपस में होती सदा लड़ाई
लेकिन जब भी नौबत आई
और खिलाना हमने कर दिया बन्द
तुरन्त हो जाते वे चाकबन्द ।
हाँ, अब चक्की हो जाती स्थिर
ख़त्म हो जाती उनकी मनमानी
सारे बन्धन तोड़कर फिर
अपने धुन में बहता पानी ।

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य