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पयामे-वफ़ा / बृज नारायण चकबस्त

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हो चुकी क़ौम के मातम<ref>दु:ख,शोक</ref>में बहुत सीनाज़नी<ref>छाती पीटने की क्रिया </ref>
अब हो इस रंग का सन्यास<ref>दीक्षा </ref>ये है दिल में ठनी
मादरे-हिन्द<ref>भारत माता </ref>की तस्वीर हो सीने पे बनी
बेड़ियाँ पैर में हों और गले में क़फ़नी

                        हो ये सूरत से अयाँ आशिक़े-आज़ादी<ref>स्वतंत्रता प्रेमी </ref> है
                        कुफ़्ल<ref>ताला </ref>है जिनकी ज़बाँ पर यह वह फ़रियादी है

आज से शौक़े वफ़ा<ref>सद्व्यवहार की लगन</ref>का यही जौहर<ref>गुण </ref>होगा
फ़र्श काँटों का हमें फूलों का बिस्तर होगा
फूल हो जाएगा छाती पे जो पत्थर होगा
क़ैद ख़ाना जिसे कहते हैं वही घर होगा

सन्तरी देख के इस जोश को शरमाएँगे
गीत ज़ंजीर की झनकार पे हम गाएँगे

शब्दार्थ
<references/>